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Tuesday 19 November 2013

विचार-श्रंखला : नवम्बर-II, 2013

जिस कथन को आचरण में न उतारा जाए, उसमें शक्ति नहीं होती।

हम चिंतन करें और हर समस्या को उसके सही नजरिए से देखें तो हल निकल आएगा।

जो व्यक्ति अपना काम पूजा की तरह करते हैं, उन्हें समय कभी लम्बा और उबाऊ नहीं लगता।

जीवन का ध्येय तभी है, जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो, यह समर्पण न्यायमुक्त होना चाहिए।

थकने वाला थका ही रहता है और न थकने वाला कहीं का कहीं पहुंच जाता है।

अपने स्वरूप का ज्ञान करने के लिए भी एक ईश्‍वर रूपी गुरु की जरूरत होती है।

पुस्तकों का मूल्य रत्नों से भी अधिक है, क्योंकि वे अन्त:करण को उज्जवल करती है।

सभी को अपनी स्वतंत्रता प्रिय है, लेकिन इसे कायम रखने के लिए भय का सहारा नहीं लिया जा सकता।

यदि आदमी विपरीत परिस्थितियों में भी आपा नहीं खोता है, तो ऐसी स्थिति उसके लिए स्वर्ग जैसी है।

मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से, लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है।

कभी भी वह काम न करें, जो दूसरे कर रहे थे और इसीलिए आप भी करने लगे। अपनी प्राथमिकताएं स्वयं तय रखें।

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