हम अपनी नजर से ही दूसरों को देखते है। जिसमें हमें दूसरों का व्यवहार भी अपने जैसा ही नजर आता है।
हर माता-पिता को अपने बच्चों का पालन पोषण करते समय कुछ मामलों में बेरहमी से पेश आना चाहिए।
पशु न बोलने की वजह से कष्ट उठाता है और मनुष्य बोलने की वजह से।
जीवन का महत्व तभी है, जब वह किसी महान ध्येय के प्रति समर्पित हो, यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त होना चाहिए।
अच्छे विचार और अच्छे कर्म, मानव जीवन को सार्थक बनाते हैं।
आप जो कुछ हैं या अपने जीवन में देख और पा रहे हैं यह कोई संयोग या इत्तफाक नहीं है। आपका जीवन आपकी ही प्रतिध्वनि है, परावर्तन है। यानी आप जीवन को जो कुछ दोगे, वह आपको वैसा का वैसा ही लौटा देगा।
क्रोध की तीव्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक क्षण में क्रोधित होने वाले व्यक्ति के पूरे हाव-भाव बदल जाते हैं।
दैवीय शक्ति के बिना न तो आंखें देख पाती है, न कान सुन सकते हैं और न ही मस्तिष्क सोच पाता है।
धरती के सारे खजाने भी एक खोया हुआ क्षण वापस नहीं ला सकते।
बेलगाम होने में एक आनन्द तो है, लेकिन उसमें बहुत कुछ गंवाना भी पड़ता है और कई बार तो सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगता, यकीन मानिए, जीवन में अनुशासन का कोई विकल्प नहीं है।
शरीय और आत्मा के सम्बन्ध का पहला बिन्दु जन्म और अंतिम बिन्दु मृत्यु है, इनके बीच की प्रवृत्ति संस्कार है।
अपने आपको कभी किसी से हीन नहीं समझना चाहिए, क्योंकि ईश्वर सभी का बराबर ध्यान रखता है।
खातिरदारी जैसी चीज में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने में न मिठास है और न स्वाद।
जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपना मनोबल डिगने नहीं देता है, उसे जीवन में कोई परेशानी नहीं होती।
कष्ट ही प्रेरक शक्ति है, जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और बढाती है।
हर माता-पिता को अपने बच्चों का पालन पोषण करते समय कुछ मामलों में बेरहमी से पेश आना चाहिए।
पशु न बोलने की वजह से कष्ट उठाता है और मनुष्य बोलने की वजह से।
जीवन का महत्व तभी है, जब वह किसी महान ध्येय के प्रति समर्पित हो, यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त होना चाहिए।
अच्छे विचार और अच्छे कर्म, मानव जीवन को सार्थक बनाते हैं।
आप जो कुछ हैं या अपने जीवन में देख और पा रहे हैं यह कोई संयोग या इत्तफाक नहीं है। आपका जीवन आपकी ही प्रतिध्वनि है, परावर्तन है। यानी आप जीवन को जो कुछ दोगे, वह आपको वैसा का वैसा ही लौटा देगा।
क्रोध की तीव्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक क्षण में क्रोधित होने वाले व्यक्ति के पूरे हाव-भाव बदल जाते हैं।
दैवीय शक्ति के बिना न तो आंखें देख पाती है, न कान सुन सकते हैं और न ही मस्तिष्क सोच पाता है।
धरती के सारे खजाने भी एक खोया हुआ क्षण वापस नहीं ला सकते।
बेलगाम होने में एक आनन्द तो है, लेकिन उसमें बहुत कुछ गंवाना भी पड़ता है और कई बार तो सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगता, यकीन मानिए, जीवन में अनुशासन का कोई विकल्प नहीं है।
शरीय और आत्मा के सम्बन्ध का पहला बिन्दु जन्म और अंतिम बिन्दु मृत्यु है, इनके बीच की प्रवृत्ति संस्कार है।

खातिरदारी जैसी चीज में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने में न मिठास है और न स्वाद।
जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपना मनोबल डिगने नहीं देता है, उसे जीवन में कोई परेशानी नहीं होती।
कष्ट ही प्रेरक शक्ति है, जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और बढाती है।
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