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Thursday 19 September 2013

विचार-श्रंखला : सितम्बर-II, 2013

परित्याग बहुत मुश्किल है, फिर भी क्रोध को त्यागने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।

इंसान को प्रतिदिन शांत चित्त रहना चाहिए और चेहरे पर मुस्कुराहट रहनी चाहिए।

किसी भी उपदेश को मान लेना अलग बात है और उस पर अमल करना दूसरी बात है।

करुणा में इतनी शीतलता है, जो क्रूर व्यक्ति को भी द्रवित कर दे।

वही सच्चा साहसी है जो कभी निराश नहीं होता।

क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार में से कोई भी दुर्गुण मनुष्य के पतन का कारण हो सकता है।

केवल मनुष्य के मन में ही मृत्यु-बोध उभरता है। मैं मरूंगा-ऐसा ख्याल किसी पशु पक्षी या पेड़ पौधे को नहीं आता।

लोभी व्यक्ति सारा संसार प्राप्त कर लेने पर भी भूखा रहता है।

प्रशंसा सुनना मानवीय स्वभाव है, हर आदमी चाहता है कि उसकी सराहना हो, हमें इसका ध्यान रखना चाहिए।

विपरीत स्थितियों में भी यदि आदमी शांत रहना सीख लेगा, तो उसके जीवन में कोई परेशानी नहीं आएगी।

जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।

परिस्थितियां कितनी भी बुरी प्रतीत हों, हमारे पास, खुशहला जिन्दगी के लिए काफी कुछ बचा रहता है।

प्यार से बोला हुआ एक शब्द अनेकों दुखी हृदयों को सांत्वना देता है।
सुन्दरता भगवान की देन है, लेकिन अपनी वाणी को सुन्दर बनाना आप पर ही निर्भर करता है।

सदा विश्‍वास रखना और हताश न होना ही सफलता का मूल है।

उपकार करके कहना, उसे दूसरों से कहना उपद्भत व्यक्ति से दुश्मनी करने के समान है।

हमें यह ध्यान देना चाहिए कि जिस प्रकार हम अपने विचारों पर दृढ रहते हैं, उसी प्रकार अन्य व्यक्ति भी अपने विचारों पर दृढ हो सकते हैं।

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