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Tuesday, 23 April 2013

विचार-श्रंखला : अप्रेल-I, 2013

जिसके पास उम्मीद है, वह लाख बार हारकर भी नहीं हारता।

अगर आम मोहक व्यक्तित्व वाले और लोगों के आकर्षण का केन्द्र होना चाहते हैं तो आपको अच्छा वक्ता होना चाहिए। अपनी सम्प्रेषण कला से कोई व्यक्ति सीधी बात को भी बहुत रोचक बना सकता है। बोलने की यह कला आपमें जन्मजात हो, जरूरी नहीं। इसे कोशिश से पाया जा सकता है।

दूसरों को सुनना भी जरूरी है, जिसके लिये जरूरी है कि-दूसरों की बातों को ध्यान से सुनना। वाक्य खत्म होने से पहले नहीं बोल पड़ना। सवालों के जवाब में उल्टे सवाल नहीं करना। पूर्वाग्रह हर किसी में होते हैं, लेकिनउन्हें समझना और उन पर नियन्त्रण रखना जरूरी है। जब दूसरे बोल रहे हों तो उन्हें सुने न कि अपने ही विचारों में खोये रहें। जब एक व्यक्ति बोल चुके तब ही अपने जवाब के बारे में सोचना चाहिये, बीच में नहीं। मुद्दे की बात करें, न कि अपनी अभिरुचि की बात करें।

संस्थानों को अपने पुराने कर्मचारियों या सदस्यों के सम्पर्क में रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर उनके अनुभव का लाभ भी उठाना चाहिए।

स्त्रोत : प्रेसपालिका, 16-30 अप्रेल, 2013

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